१२.सपूत|हिंदी कहानी|कक्षा पाचवी

                 १२.सपूत


 बहुत पुरानी बात है। फुलेरा नामक एक

आदर्श गाँव था । गाँव में हरतरफ स्वच्छता

थी । गाँव की गलियों में नियमित रूप से झाड़ू लगाई जाती थी । नालियाँ रोज साफ की जाती थीं । लिपाई-पुताई करके घर-आँगन सुंदर रखा जाता था । परिसर में बड़ी संख्या में पेड़-पौधे थे । कुएँ का पानी निर्मल रखने के लिए आवश्यक सावधानियाँ बरती जाती थीं ।पनघट स्वच्छ और सुसज्जित था। एक दिन पनघट पर तीन स्त्रियाँ पानी भर रही थीं । वे अपने-अपने लाड़ले के गुणोंका बखान कर रही थीं। एक बोली, "बहन !मेरा सपूत बड़ा विद्वान है । जब से शहर से पढ़कर आया है, चारों ओर उसकी धूम मची है।

बड़े-बड़े ग्रंथ पढ़ लेता है। आकाश के तारों को देखकर उनके नाम बता देता है । देश-विदेश की सभी बातों का उसे पता है ।” दूसरी ने जोश में झट से आगे बढ़कर कहा, “अरी सखी ! मेरे लाल-जैसा बली तो दस-पाँच गाँवों में देखने को भी नहीं मिलेगा । पाँच सौ दंड-बैठक वह रोज सुबह लगाता है । अखाड़े में जब ताल ठोंककर उतर पड़ता है तो बड़े-बड़े पहलवान तक उसका मुकाबला करने से

घबराते हैं । वह मेरा सपूत है।"अब तीसरी स्त्री की बारी थी पर वह चुप रही । इसपर उन दोनों ने कहा, "बहन, तुम चुप क्यों हो ? लगता है तुम्हारा लड़का कपूत निकला ।” तीसरी स्त्री बिना किसी जोश या गर्व से बोली, “बहनो ! सपूत या कपूत जैसे शब्द तो मैं नहीं समझती पर मेरा लाल मेरे लिए बहुत अच्छा है। वह सीधे-सादे स्वभाव का साधारण किसान है। दिन भर खेत में जुता रहता है । शाम को घर का काम करता है ।आज बहुत कहने-सुनने पर वह मेला देखने गया है, इसीलिए मुझे पानी भरने आना पड़ा ।”तीनों स्त्रियाँ अपने-अपने सिर पर घड़ा रखकर चल पड़ीं । अभी वे दो-चार कदम ही चली थीं कि पहली स्त्री का पुत्र आता हुआ दिखाई पड़ा । पास आते ही उसने अपनी माँ से

कहा, “व्याख्यान देने जा रहा हूँ । भोजन वहीं करूँगा।” यह कहकर वह तेजी से चला गया । तभी दूसरी स्त्री का पहलवान पुत्र भी आता हुआ दिखा । वह मतवाले हाथी की तरह झूम रहा था । उसने अपनी माँ से कहा, "माँ, आज दंगल में मैंने एक नामी पहलवान को बुरी तरह पछाड़ा । पानी लेकर जल्दी घर पहुँचना, मुझे जोरों की भूख लगी है।" यह कहकर वह घर की ओर बढ़ गया ।अंत में तीसरी स्त्री का पुत्र भी आ पहुँचा । वह बड़ा ही सीधा-सादा था । आते ही उसने अपने माँ के सिर से घड़ा उतारकर अपने सिर पर रख लिया और बोला, “माँ, तुम क्यों पानी भरने चली आईं ? मैं तो आ ही रहा था ।” माँ से घड़ा लेकर वह उत्साह के साथ घर की ओर चल पड़ा। यह देखकर अन्य दोनों स्त्रियों का सिर संकोच से झुक गया । उन्हें बोध हो गया था कि कर्तव्य और सेवा के बिना ज्ञान एवं बल अधूरे हैं। वे समझ गईं कि सपूत तो तीसरी स्त्री का बेटा ही है ।

- श्रीकृष्ण 

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Gajanan  













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