भाई-भाई का प्रेम|बंधू प्रेमकथा|bhai-bhai ka prem
मनोहरपुर नामक एक सुंदर गाँव था । गाँव की मिट्टी बहुत उपजाऊ थी । अतः गाँव के
अधिकांश लोग खेती किया करते थे । इसी मनोहरपुर में दो भाई रहते थे। दोनों किसान थे । उनके घर अलग-अलग थे पर दोनों में बड़ा प्रेम था । दोनों भाई हमेशा एक-दूसरे की भलाई की बात सोचा करते थे ।इस वर्ष पूरे गाँव में फसल अच्छी हुई थी । कटाई हो चुकी थी । खलिहान में सबके अनाज के ढेर लगे थे । एक दिन रात में बड़ा भाई लेटे-लेटे सोचने लगा, 'मेरे दो बच्चे हैं। वे गृहस्थी में मेरी कुछ-न-कुछ मदद करते ही हैं । मेरे छोटे भाई के बाल-बच्चे नहीं हैं । उसे सारा काम अकेले ही सँभालना पड़ता है ।इसलिए मुझे उसकी सहायता करनी चाहिए ।' यह सोचकर वह उठा और खलिहान में गया, खलिहान में अपने अनाज के ढेर से उसने दस गठरी अनाज बाँधा । उनमें से एक गठरी सिर पर रखकर छोटे भाई के ढेर की ओर बढ़ा । ठीक उसी समय छोटा भाई भी अपने घर
में बैठा सोच रहा था, 'मैं जवान हूँ । जितना चाहे उतना काम कर सकता हूँ, जहाँ चाहूँजा सकता हूँ । किसी कारणवश यदि खेती में फायदा नहीं हुआ तो कोई दूसरा काम कर लूँगा । मेरा खर्च कम है लेकिन मेरे बड़े भैया तो बाल-बच्चेवाले हैं । घर गृहस्थी के खर्च अधिक हैं । इसलिए मुझे उनकी सहायता करनी चाहिए ।' वह भी उठा और खलिहान में गया|खलिहान में अपने अनाज के ढेर में से उसने भी दस गठरी अनाज बाँधा।
उनमें से एक गठरी सिर पर उठाकर बड़े भाई के ढेर की ओर बढ़ा ।
अँधेरी रात थी । हाथ को हाथ भी दिखाई न देता था। इस वातावरण में दोनों भाई धीरे-धीरे एक दूसरे के अनाज के ढेर की ओर बढ़ रहे थे । अचानक वे एक-दूसरे से टकरा गए।दोनों चौंककर एक साथ बोले, "कौन है ?"दोनों भाइयों ने एक-दूसरे को देखा ।दोनों समझ गए ।
बड़े भाई ने कहा, “छोटे ! तुम्हारी मदद करने वाला कोई नहीं है । खेती का सारा काम तुम्हें अकेले सँभालना पड़ता है । मैंने सोचा कि तुम्हारे पास अनाज अधिक होगा तो अधिक दिन तक घर चलेगा इसलिए मैं खलिहान से अनाज तुम्हारे ढेर में डालने जा रहा था ।” “भैया ! आप बाल-बच्चेवाले हैं।आपके खर्च अधिक हैं। आपकोअधिक मात्रा में अनाज की आवश्यकता होती है इसलिए मैं खलिहान से अनाज आपके ढेर में डालने जा रहा था ।"अपनी बात कहते-सुनते दोनों भाइयों की आँखें भर आईं । दोनों रोते हुए एक-दूसरे के गले लग गए ।
दोनों भाइयों के प्रेम की यह कहानी आज उनके सिर पर अनाज की गठरियाँ थीं । दोनों भी लोग भाव-विभोर होकर सुनते-सुनाते हैं।
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