स्वराज के रक्षक- बहिर्जी नाईक
बहिर्जी नाईक मराठा साम्राज्य के महान गुप्तचर (जासूस) और छत्रपति शिवाजी महाराज के भरोसेमंद सहयोगी थे। उनका जन्म 17वीं शताब्दी में महाराष्ट्र में हुआ था। बहिर्जी नाईक को भारत के इतिहास में सबसे चतुर और साहसी गुप्तचरों में गिना जाता है। उन्होंने शिवाजी महाराज की सामरिक योजनाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, खासकर सूचनाएँ इकट्ठा करने, शत्रु की गतिविधियों पर नजर रखने और गुप्त संदेशों को पहुँचाने में।
बहिर्जी नाईक का जीवन अत्यंत रहस्यमय और साहसिक था। वे रूप बदलने में माहिर थे। कभी साधु, कभी व्यापारी, तो कभी भिक्षुक बनकर शत्रु की भूमि में प्रवेश करते और महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ लेकर सुरक्षित लौट आते थे। उनके पास एक व्यापक गुप्तचर नेटवर्क था, जिसे वे बहुत चतुराई से संचालित करते थे। इस नेटवर्क की सहायता से शिवाजी महाराज को दुश्मनों की योजनाओं की जानकारी पहले से ही मिल जाती थी, जिससे वे अपनी रणनीति को उसी अनुसार तय करते थे।
बहिर्जी नाईक की सबसे प्रसिद्ध उपलब्धियों में से एक सर्जानगड किले पर विजय से जुड़ी है। यह किला आदिलशाही शासन के अधीन था और रणनीतिक दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण था। बहिर्जी नाईक ने किले की जानकारी इतनी कुशलता से इकट्ठा की कि शिवाजी महाराज ने बिना किसी बड़ी हानि के किले पर कब्ज़ा कर लिया। इसी प्रकार, उन्होंने अफ़ज़ल खान के विरुद्ध अभियान में भी अहम भूमिका निभाई थी।
बहिर्जी नाईक के कार्य सिर्फ युद्ध तक सीमित नहीं थे। वे साम्राज्य की आंतरिक सुरक्षा, राजकीय गोपनीयता और लोगों की नब्ज पर भी नजर रखते थे। उन्हें यह भी जिम्मेदारी दी जाती थी कि वे दुष्ट और धोखेबाज व्यक्तियों की पहचान करें और उन्हें समय पर रोका जाए। उनकी वजह से मराठा साम्राज्य लंबे समय तक सुरक्षित और संगठित बना रहा।
इतिहास में उनके योगदान को उस प्रकार स्थान नहीं मिला, जैसा मिलना चाहिए था, परंतु आधुनिक समय में उनकी भूमिका को पहचाना गया है। महाराष्ट्र में कई विद्यालयों और संस्थानों में बहिर्जी नाईक की जीवनगाथा पढ़ाई जाती है। उन्हें मराठा साम्राज्य के 'मुख्य गुप्तचर' की उपाधि दी गई थी।
निष्कर्ष:- बहिर्जी नाईक केवल एक गुप्तचर नहीं, बल्कि एक राष्ट्रभक्त, बुद्धिमान रणनीतिकार और छत्रपति शिवाजी महाराज के अत्यंत विश्वसनीय साथी थे। उनका जीवन आज भी साहस, बुद्धिमत्ता और देशभक्ति की प्रेरणा देता है।