गडाधन-हिंदी कहानी|gada dhan

 ||गडाधन-हिंदी कहानी||




 

सुंदरपुर गाँव में रामदीन नामक किसान हता था। उसके चार बेटे थे। रामदीन स्वयंबहुत परिश्रमी था पर उसके चारों बेटे बड़े आलसी थे। हर समय इधर-उधर बैठकर गप्पे मारा करते थे। रामदीन उनके इस अल्हड़पन से परेशान था। उसे हमेशा बेटों के भविष्य की चिंता सताया करती। वह दिन-रात यही सोचा करता कि बेटे अपना पेट कैसे पालेंगे। एक रात वह इन्हीं विचारों में खोया था, तभी उसकी पत्नी ने झिझकते हुए उसे एक उपाय सुझाया।उपाय सुनकर वह कुछ देर सोचता रहा। फिर एकाएक खुशी से उछल पड़ा। अगली सुबह रामदीन ने अपने चारों बेटों को बुलाकर कहा, "मैं और तुम्हारी माँ अब हे हो गए हैं। हम दूर तीर्थयात्रा पर जा रहे हैं। मैंने खेत में धन गाड़कर छिपा रखा है। यदि कोई जरूरत पड़े तो उसे निकालकर उपयोग कर लेना।" गड़े हुए धन की बात सुनकर बेटे खुशहो गए और उन्होंने अपने पिता जी को खुशी-खुशी तीर्थयात्रा पर जाने के लिए कह दिया।वे  मन-ही-मन खुश हो गए कि अब कुछ दिनों तक पिता जी का बंधन भी उनपर नहीं होगा।रामदीन के जाने के बाद कुछ दिनों तक तो सब कुछ सामान्य चलता रहा पर उसके बाद पास का धन और घर का धान्य समाप्त होने लगा। अब चारों भाइयों को चिंता हुई। उन्हें अपने पिता जी की कही बात याद आ गई कि जरूरत पड़ने पर खेत में गड़ा धन निकाल लेना।उन्होंने रात के समय खेत की खुदाई का काम आरंभ किया। वे दो-तीन रातें खेत को खोदते रहे, पर कहीं भी उन्हें गड़ा हुआ धन नहीं मिला। रात भर के परिश्रम से वे बहुत थक गए थे। जब सुबह बहुत निराश और हताश होकर वे चारों अपने घर लौट रहे थे, तभी रामदीन के परम मित्र हरिनाथ ने पूछा, “तुम सब थके हुए क्यों हो ?" कारण जानने के बाद हरिनाथने उन चारों को सलाह देते हुए कहा, “तुम लोगों ने खेत तो खोद ही लिया है, अब उसमें बीज बो दो ।” चारों भाइयों के उदास चेहरों पर खुशी की लहर दौड़ गई। उन्होंने हरिनाथके कहे अनुसार ही किया।खेत में नन्हे-नन्हे अंकुर निकल आए। उन चारों के मन में उत्साह जाग गया। वे निराई-गुड़ाई करने लगे। फसल बहुत अच्छी हुई ।हरिनाथ काका को धन्यवाद देकर वे फसल को बाजार में बेचने के लिए ले जाने की तैयारी में जुट गए। उसी समय तीर्थयात्रा से रामदीन और उसकी पत्नी लौट आए। माता-पिता के आते ही बेटों ने उनके चरणस्पर्श किए। गाड़ी में लदे अनाज के बोरे देखकर रामदीन ने कहा, "अब तुम्हें खेत में गड़े धन का राज समझ में आ गया होगा।" चारों ने सिर हिलाकर स्वीकार किया और कहा, "हाँ, पिता जी ! अब हम यह भी समझ गए हैं कि जीवन में परिश्रम के बिना कुछभी संभव नहीं है । परिश्रम से ही धन कमाया जा सकता है ।”

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